मैया मेरी

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एक बात मैया मेरी याद रखना...मन्जू गोपालन/श्री सनातन धर्म महिला समिति, कीर्तन स्थान: बाग मुज़फ़्फ़र खां, आगरा यहां क्लिक करके यू ट्यूब पर देखिए मैया मेरी

Monday, May 4, 2009

मन्त्र

असरदार होते हैं मंत्र

मन्त्रों के प्रभाव को लेकर देश-विदेश में निरन्तर शोध भी होते रहे हैं। डॉ. लिवर लिजेरिया एवं अन्य का मानना है कि ह्रीं, ॐ, हरि आदि के उच्चारण का शरीर के विभिन्न भागों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। डॉ. लिजेरिया ने अपने 17 साल के शोध में पाया कि हरि के साथ ॐ को जोड़कर उच्चारण किया जाए तो इसका सकारात्मक प्रभाव शरीर की पाचों ज्ञानेन्द्रियों पर पड़ता है।

मंत्रों के प्रयोगों और उनके प्रभावों के अनगिनत उदाहरण हमारे ग्रन्थों में मौजूद हैं। देखने-पढ़ने में मन्त्रों के शब्दों का कोई खास अर्थ नहीं मालूम पड़ता। पर मन्त्र हमारी सोई शक्ति को जगाने और संकल्प को वातावरण में विसरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मन्त्रों का अति सूक्ष्म पर बड़ा प्रभाव होता है। मन्त्र विज्ञान एक अनूठा विज्ञान है जिसका उचित लाभ मिलना इसके ज्ञाता गुरु और उपयुक्त साधक पर निर्भर करता है और तभी मन्त्र की महिमा सामने आती है।

मन्त्रों के सही उच्चारण, शब्दों के उचित संयोजन, साधक की श्रद्धा, जप, एकाग्रता, सदाचार आदि का मन्त्र जाप के फलदायी प्रभावों को प्रभावित करते हैं। यदि साधक की साधना में किसी प्रकार की कमी है तो अपेक्षित लाभ नहीं मिल पाता। मन्त्रोच्चार में शब्दों का सही संयोजन और अक्षरों तथा मात्राओं का सही उच्चारण होना चाहिए। संस्कृत में हृस्व और दीर्घ की गलती भी महत्व रखती है। साधक को पूर्ण श्रद्धा, संयम और एकाग्रता के साथ अपना कार्य करना चाहिए अन्यथा मन्त्र का प्रभाव बदल जाएगा। मन्त्रों का प्रभाव ब्रह्माण्डव्यापी होता है। रामचरिमानस के रचयिता तुलसीदास के अनुसार-
मन्त्र जाप मम दृढ़ विस्वासा।
पंचम भजन सो बेद प्रकासा।।

मन्त्रों के प्रभाव को लेकर देश-विदेश में निरन्तर शोध भी होते रहे हैं। डॉ. लिवर लिजेरिया एवं अन्य का मानना है कि ह्रीं, ॐ, हरि आदि के उच्चारण का शरीर के विभिन्न भागों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। डॉ. लिजेरिया ने अपने 17 साल के शोध में पाया कि हरि के साथ ॐ को जोड़कर उच्चारण किया जाए तो इसका सकारात्मक प्रभाव शरीर की पाचों ज्ञानेन्द्रियों पर पड़ता है। यहां तक कि निःसन्तान दम्पति को सन्तान की प्राप्ति हो जाती है। यह आज के शोध के परिणाम हैं पर हमारे ऋषि-मुनियों ने हजारों साल पहले इस बात को जानकर शास्त्रों में लिख दिया था। उनके द्वारा मन्त्रों के प्रभाव को लेकर की गयी खोज में उन्हौंने स्थूल शरीर को ही नहीं अपितु समूचे विश्व को आधार बनाया था।


निराकार और साकार को लेकर भी विभिन्न धर्मानुयायियों में चर्चा होती रही है। यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो चुका है कि आकृति और शब्द का परस्पर गहरा सम्बन्ध है। किसी सम्बोधन या शब्द के साथ आकृति का सम्बन्ध होना अपेक्षाकृत अधिक प्रभावी होता है। जैसे हाथी शब्द दो अक्षरों और दो मात्राओं के मेल से बना है, इसके साथ उस शाकाहारी पशु की विशालकाय आकृति का सम्बन्ध है जो जंगल में रहता है और बुद्धिमान होता है। हाथी शब्द के उच्चारण के साथ ही उसकी छवि मानसपटल पर आ जाती है।


ऋषि-मुनियों का मानना था कि हमारा भौंतिक शरीर अन्नमय है, इसके भीतर प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनन्दमय चार शरीर और भी हैं। यदि शरीर से प्राणमय निकल जाए तो अन्नमय शरीर निर्जीव हो जाएगा। प्राणमय शरीर का संचालन भी मनोमय शरीर करता है। मन के संकल्प-विकल्प के आधार पर ही प्राणमय शरीर क्रियाशील रहता है और मनोमय शरीर के भीतर विज्ञानमय शरीर होता है। पांचों ज्ञानेन्द्रियां और बुद्धि को विज्ञानमय शरीर कहते हैं। बुद्धि के द्वारा किये गये निर्णय के अनुसार शारीरिक अंग सक्रिय होकर सम्बन्धित कार्य को पूरा करते हैं। इस विज्ञानमय शरीर से भी अधिक गहराई में आनन्दमय शरीर होता है। हम जो भी प्रयास करते हैं वह आनन्द के लिए करते हैं, परमात्मा आनन्दस्वरूप होता है और इस कोष के निकट स्थित कोष को आनन्दमय कोष कहते हैं। इस प्रकार हम जिस आनन्द का अनुभव करते हैं वह परमात्मा का आनन्द है। वह आनन्दस्वरूप है और मन्त्र उस परमात्मा तक के पांचों कोषों को प्रभावित करता है। ईश्वर नाम के जप का इन कोषों, समस्त नाड़ियों और सातों केन्द्रों में सात्विक प्रभाव पड़ता है।
टी.सी.चन्दर
सौजन्य: प्रभासाक्षी.कॉम

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